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मिर्गी के इलाज के लिए हुई थी कीटो डाइट की शुरुआत, अब वजन घटाने के लिए हो रहा इस्तेमाल; इसके चक्कर में एक एक्ट्रेस की मौत भी हो गई

हिन्दी और बांग्ला फिल्मों की एक्ट्रेस मिष्टी मुखर्जी का किडनी फेल होने से दो दिन पहले निधन हो गया। बताया गया है कि 27 साल की मिष्टी की हालत कीटो डाइट लेने की वजह से बिगड़ी थी। आपमें से अधिकतर लोग लोग कीटो डाइट से परिचित होंगे, हो सकता है कुछ ने सिर्फ नाम सुना हो। आज बॉलीवुड स्टार से लेकर कई बड़े सेलिब्रिटी कहते मिल जाएंगे कि उन्होंने अपना वजन कीटो डाइट से घटाया है या फिर वो आजकल कीटो डाइट पर हैं।… समझते हैं कि कैसे मिर्गी के इलाज के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली डाइट वजन घटाने में इस्तेमाल की जाने लगी।

दरअसल, कीटो शब्द कीटोन से बना है। 19वीं सदी के मध्य में डायबिटीज के एक मरीज के यूरिन में सबसे पहले कीटोन की खोज की गई थी। इसे अमेरिकी वैज्ञानिक थियोडर बी वैनइटैली और थामस एच नुफर्ट ने खोजा था। कीटोन ऐसे केमिकल्स होते हैं जिन्हें लीवर बनाता है। दरअसल, जब हमारे शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है तो शरीर ग्लूकोज से ऊर्जा नहीं निकाल पाता। ऐसे में लीवर शरीर में जमा फैट को कीटोन्स में बदल देता है। ये कीटोन्स एक तरह का एसिड होते हैं जो रक्त प्रवाह में शामिल होकर मशल्स और दूसरे टिश्यू के लिए ईंधन का काम करते हैं।

(ये बात हो गई कीटोन की और अब आते हैं कीटोजेनिक डाइट पर)
बीमारी के इलाज में उपवास की भूमिका हजारों सालों से जानी जाती रही है। ग्रीक और भारतीय चिकित्सा पद्धति में उपवास के जरिए इलाज बहुत प्रचिलित था। बंगाल के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनन्या मंडल ने एक आर्टिकल में बताया कि बहुत समय पहले मिर्गी के इलाज में मरीजों को पोटेशियम ब्रोमाइड दिया जाता था, लेकिन इसकी कमी यह थी कि इससे मरीज की सोचने-समझने की क्षमता कमजोर हो जाती थी। 2०वीं सदी की शुरुआत में अमेरिकी हेल्थ एक्सपर्ट बर्नर मैकफेडेन ने लोगों को बताना शुरू किया कि उपवास रखने से शरीर को सही रखा जा सकता है। बाद में उनके स्टूडेंट ह्यू कांक्लिन ने बताया कि उपवास के जरिए मिर्गी का भी इलाज किया जा सकता है। कांक्लिन ने बताया कि मिर्गी के दौरे आंतों में बनने वाले एक जहर के कारण आते हैं। अगर 18 से 25 दिन तक उपवास रखा जाए तो यह जहर खत्म हो जाता है। उन दिनों कांक्लिन अपने मरीजों को इतने दिनों तक केवल पानी के सहारे रखते थे, उनके मुताबिक 9०% बच्चे और 5०% वयस्क मरीज इसके जरिए सही हुए। फ्रांस में भी 1911 में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ, इसमें बताया गया कि किस तरह उपवास रखना मिर्गी के इलाज में फायदेमंद है। इसके बाद से मिर्गी के इलाज में उपवास का तरीका सभी जगह इस्तेमाल किया जाने लगा।

बर्नर मैकफेडेन की फाइल फोटो। सोर्स- गूगल

साल 1921 में अमेरिका के एक इंडोक्रिनोलॉजिस्ट (शरीर के अंदर के रसायनों का पता लगाने वाले) रॉलिन वुडयॉट ने पता लगाया कि आखिर उपवास रखने पर हमारे शरीर के अंदर क्या होता है? उन्होंने बताया कि भूखमरी की हालत में हमारा लीवर तीन यौगिक बनाता है। ये हैं- एसीटोन, हाइड्रॉक्सीब्यूट्रेट और एसिटोएसीटेट (इन्हीं को साथ में मिलाकर कीटोन बॉडीज कहा जाता है)। उन्होंने बताया कि अगर आहार में वसा की मात्रा ज्यादा और कार्बोहाइड्रेट कम हो तो भी लीवर ये कीटोन पैदा करते हैं। इससे उपवास की जरूरत नहीं पड़ेगी। आहार की इसी मात्रा को कीटोजेनिक डाइट कहा गया और इसका इस्तेमाल मिर्गी की बीमारी में किया जाने लगा। इसके बाद से कई रिसर्च हुई और कीटोजेनिक डाइट में वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा में बदलाव होता रहा। दरअसल, यह डाइट शरीर में जमे फैट को खत्म करती है, इसलिए धीरे-धीरे यह वजन कम करने की प्रमुख डाइट बन गई।

कीटोजेनिक डाइट क्या है?
वैसे तो व्यक्ति की उम्र के लिहाज से अलग-अलग तरह की कीटो डाइट प्लान की जाती हैं। लेकिन, एक स्टैंडर्ड कीटो डाइट में 7० फीसदी फैट, 25 फीसद प्रोटीन और सिर्फ 5 फीसद कार्बोहाइड्रेट होता है। इस डाइट के पीछे सिद्धांत ये है कि शरीर को बाहर से ऊर्जा का सोर्स  न मुहैया कराना। हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट जैसे- अनाज, शक्कर, आलू और फलकोे ही ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करता है, इससे ही हमें एनर्जी मिलती है। कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में बदलना शरीर के लिए आसान काम होता है। हम जो कार्बोहाइड्रेट लेते हैं उसका कुछ भाग तो ग्लूकोज बनकर एनर्जी देता है और बाकी शरीर में ही स्टोर हो जाता है। इसलिए वजन कम करने के लिए कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम करनी होती है।
कीटो डाइट में जब कार्बोहाइड्रेट लेना बंद हो जाता है, तो शरीर एनर्जेटिक रहने के लिए फैट का सहारा लेता है। फैट से एनर्जी निकालने के लिए लीवर में बनते हैं कीटोन्स और आपकी बॉडी कीटो स्टेज में पहुंच जाती है। कीटो स्टेज में शरीर में जमा हुआ फैट बर्न होता है और वजन घटता है।

कीटो डाइट लेते समय बरतें सावधानी
कीटो डाइट को लेते समय बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है। अपनी उम्र और शरीर के हिसाब से ही कीटो डाइट प्लान करनी चाहिए। डॉक्टर की देख-रेख में ही इसे करना चाहिए। अनाज बंद करने से शरीर में फाइबर, मिनरल्स और विटामिन की कमी हो जाती है। ऐसे में इन्हें बाहर से एड करने की जरूरत होती है। काब्र्स की मात्रा कम होने पर शरीर पानी को होल्ड करना बंद कर देता है। ऐसे में पानी भी खूब लेना चाहिए।

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