गौतम बुद्ध और महावीर के साथ मुंशी प्रेमचंद और अमृता शेरगिल के जीवन से जुड़ी गोरखपुर की कहानी…
उत्तर प्रदेश के पूरब में नेपाल की सीमा के पास एक जिला है जिसे गोरखपुर कहते हैं। वह जिला जिससे टूटकर तीन जिले बने। आज हम स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाने वाले जिले गोरखपुर की कहानी बता रहे हैं।
भारत की महान चित्रकार अमृता शेरगिल की फेमस पेंटिंग्स ‘वीमेन ऑन द चारपॉय’, ‘द ब्राइड’, ‘स्विंग’, ‘रेस्टिंग’, ‘लेडीज़ एन्क्लोज़र’ और ‘मदर इंडिया’ समेत कई महत्वपूर्ण चित्रों को देखेंगे तो उनमें एक बात कॉमन मिलेगी। वह यह है कि ये सब गोरखपुर की जमीन पर बने हैं। आज से 100 साल से भी ज्यादा पहले बुडापेस्ट में डेन्यूब नदी के किनारे अमृता शेरगिल का जन्म हुआ। पेरिस से लेकर बुडापेस्ट, शिमला और लाहौर तक में उनके रहने, पढ़ने और चित्रकारी करने से जुड़े कई संस्मरण प्रकाशित हो चुके हैं। हालांकि गोरखपुर के सरदारनगर में उनके प्रवास के बारें में सार्वजनिक जानकारी बहुत ही कम मौजूद है। आज का सरदारनगर तब सराया नाम से जाना जाता था।
भारत में आधुनिक कला की पुरोधा और हिंदुस्तान की अपनी ‘फ्रीडा काहलो’ के तौर पर भी पहचानी जाने वाली अमृता ने दिसंबर 1939 से सितम्बर 1941 तक का समय गोरखपुर के इस छोटे से गांवनुमा कस्बे में अपने पति डॉ. विक्टर एगान के साथ बिताया।
अमृता शेरगिल ही नहीं कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने जन्म भले ही लमही में लिया हो लेकिन उनकी कर्मस्थली गोरखपुर ही बनी। इस शहर में मुंशी प्रेमचंद्र ने पढ़ा भी और पढ़ाया भी। गोरखपुर में ही पहली बार उन्होंने उर्दू लिखना शुरू किया। उनकी पहली कहानी ‘मेरी पहली रचना’ गोरखपुर की एक सच्ची घटना से निकली। 4 फरवरी, 1922 की ऐतिहासिक ‘चौरी चौरा’ की घटना भारत की स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक बड़ा मोड़ थी। अंग्रेजों की बर्बरता के खिलाफ लोगों ने चौरी-चौरा पुलिस थाने को जला दिया था। इसके चलते महात्मा गांधी ने 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।
इसी गोरखपुर को हिंदू धार्मिक पुस्तकों के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक गीता प्रेस के साथ भी पहचाना जाता है। आर्य संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा गोरखपुर कोशल के प्रसिद्ध राज्य का एक हिस्सा था और छठवीं सदी में सोलह महाजनपदों में से एक था। इस क्षेत्र के सबसे पहले राजा इक्ष्वाकु थे। उन्होंने सूर्य वंश की स्थापना की थी। तब कोशल देश की राजधानी अयोध्या हुआ करती थी। गोरखपुर तब से मौर्य, शुंग, कुशना, गुप्ता और हर्ष राजवंशों के पूर्व साम्राज्यों का अहम हिस्सा रहा है। यह जनपद बौद्ध धर्म के संस्थापक महान भगवान बुद्ध, और जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर के साथ भी जुड़ा हुआ है।
गुरु गोरखनाथ के नाम पर गोरखपुर नाम पड़ा
गोरखपुर का नाम महान संत गुरु गोरखनाथ या गोरक्षनाथ के नाम पर पड़ा है। गोरखनाथ प्रसिद्ध तपस्वी संत मत्स्येन्द्रनाथ के प्रमुख शिष्य थे। गोरखपुर में गोरखनाथ का मंदिर भी है, जो नाथ सम्प्रदाय का पीठ है। गोरखनाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस स्थान पर गोरखनाथ हठ योग का अभ्यास करते थे और सालभर एक ही मुद्रा में धूनी रमाये तपस्या किया करते थे। मान्यता है कि त्रेता युग मे गोरखनाथ कांगड़ा मे माता ज्वाला के स्थान से यहां आए थे। तब गोरखपुर केवल जंगल हुआ करता था। गुरु गोरखनाथ इस स्थान से प्रभावित होकर यहीं ध्यान लगाकर बैठ गए थे। बाद में उन्हीं के नाम से इस जगह का नाम गोरखपुर पड़ा।
गोरखपुर से निकलकर तीन जिले बने हैं –
1801 में अवध के नवाब ने ईस्ट इंडिया कंपनी को इस क्षेत्र को सौंप दिया था। इसी के साथ, गोरखपुर को पहला जिलाधिकारी मिला था। पहले कलेक्टर का नाम रूटलेज था। 1829 में गोरखपुर को इसी नाम के एक डिवीजन का मुख्यालय बनाया गया था, जिसमें गोरखपुर, गाजीपुर और आज़मगढ़ के जिले शामिल थे। आरएम बिराद यहां के पहले कमिश्नर बने थे। 1865 में गोरखपुर से एक नया जिला बस्ती बनाया गया। 1946 में नया जिला देवरिया बना दिया गया। आजादी के बाद 1989 में गोरखपुर को तीसरी बार तोड़ा गया और नया जिला महाराजगंज बनाया गया।